फूल मन दर्पण देखे ,
विहँसे सब संसार।
आकुल-व्याकुल के बनो ,
आप सदा पतवार।
***
जीवन तो केवल रहा ,
संघर्षों का छोर।
जिसने इसको जी लिया ,
वही बना जग भोर।
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अपना तो बस ध्यान है ,
कहाँ-कहाँ जगदीश।
जीवा जंतु सब जड़ों में ,
उनका सदा निवास।
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आज ख़ुशी काट जाये तो ,
कल भी है इशरत।
जीवन के इस राह में ,
कहाँ मिले फुरसत।
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आप कहें 'औ' हम कहें ,
यह जग अच्छा होये।
समवेत प्रयास से ,
बात बने सब कोय।
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उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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