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Sunday, January 15, 2017

फूल मन दर्पण देखे

फूल मन दर्पण देखे ,
विहँसे सब संसार। 
आकुल-व्याकुल के बनो ,
आप सदा पतवार। 
       ***

जीवन तो केवल रहा ,
संघर्षों का छोर। 
जिसने इसको जी लिया ,
वही बना जग भोर। 
      ***

अपना तो बस ध्यान है ,
कहाँ-कहाँ जगदीश। 
जीवा जंतु सब  जड़ों में ,
उनका सदा निवास। 
       ***

आज ख़ुशी काट जाये तो ,
कल भी है इशरत। 
जीवन के इस राह में ,
कहाँ मिले  फुरसत। 
        ***

आप कहें 'औ' हम कहें ,
यह जग अच्छा होये। 
समवेत प्रयास  से ,
बात बने सब कोय। 
       ***




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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