मोहब्बत की हद तो बताओ कहाँ तक ,
निगाहें तो चलती हैं जायें जहाँ तक।
वो गेसू जो बिखरे ,नज़ाकत है कुछ तो ,
नज़र तो चलाती ,बताओ कहाँ तक।
यह मुखड़ा तो दर्पण है झीना सा परदा ,
बताओ ज़रा हम उठायें कहाँ तक।
चलो बात छोड़ो तुम आओ तो बैठो ,
मैं देखूं तुम्हें अब ,कहाँ से कहाँ तक।
वो शीरी बयानी ,वो उल्फ़त की बातें ,
बताओ ज़रा शब्द वह है कहाँ तक।
क्या मीरा की सीमा या राधा की बातें ,
किया था उन्होंने ,वह हद थी कहाँ तक।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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