चिंतन गर शब्दों पर होगा ,
नए अर्थ का होगा विस्तार ।
अनुजा ,तनुजा ,सुगम ,संगत ,
सबका अपना-अपना तार।
दृष्टि नयी देता है शब्द ही ,
गर तुम गौर से चिंतन कर लो।
शब्द पड़े तमाम सागर में ,
गागर ,सागर अर्थ निकालो।
एक शब्द है 'दुर्गति' यारों ,
स्त्रीलिंग यह शब्द रहा।
ध्यान करो ,संकेत मिलेगा ,
अपने संयम को पहचानो।
जिसने भी यह किया प्रयोग ,
वह तुमको देता है ऊर्जा।
पुरुष रहो तुम ,पुरुष बनो ही ,
अपना बुद्धि, विवेक धरो।
अर्थ-अर्थ में ,अर्थ न समझो ,
उसको समुचित कर विस्तार।
अपनी निजता को सँवारो ,
बन जाओ तुम जग उद्धार।
अब तुम बन के जग उद्धारक ,
दृष्टि नई 'औ' सोच को दो।
जीवन सफल रहेगा हरदम ,
पर तुम शब्द पर गौर करो।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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