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Sunday, January 1, 2017

मानवता का बीज मिले ,गर

मानवता का बीज मिले ,गर,
सबको मैं तो दे डालूँ। 
कहूँ-उसी का फल खाओ तुम ,
और उसी सा बन जाओ। 
शपथ-वपथ का कोई मतलब, 
तब तो नहीं सताएगा। 
सीधे तन कर चलो सड़क पर ,
गलियों का तब काम कहाँ। 
इधर-उधर न कोई भटकन ,
केवल बस अविराम यहाँ।
सुख के बादल रहें हमेशा ,
खर-पतवार का दंश नहीं। 
केवल मुक्ता नीर बहे बस ,
प्रेम भाव का फूल खिले। 
फूलों के दर्पण में महके -
मुख मंडल 'औ' रूप यहाँ। 
सुधियों की बातों में ,सुध हो ,
रह जाये मुस्कान यहाँ। 
         मानवता का बीज मिले ,गर,
         सबको मैं तो दे डालूँ। 


उमेश चंद्र श्रीवास्तव-

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