मानवता का बीज मिले ,गर,
सबको मैं तो दे डालूँ।
कहूँ-उसी का फल खाओ तुम ,
और उसी सा बन जाओ।
शपथ-वपथ का कोई मतलब,
तब तो नहीं सताएगा।
सीधे तन कर चलो सड़क पर ,
गलियों का तब काम कहाँ।
इधर-उधर न कोई भटकन ,
केवल बस अविराम यहाँ।
सुख के बादल रहें हमेशा ,
खर-पतवार का दंश नहीं।
केवल मुक्ता नीर बहे बस ,
प्रेम भाव का फूल खिले।
फूलों के दर्पण में महके -
मुख मंडल 'औ' रूप यहाँ।
सुधियों की बातों में ,सुध हो ,
रह जाये मुस्कान यहाँ।
मानवता का बीज मिले ,गर,
सबको मैं तो दे डालूँ।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
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