धानी चुनरी ओढ़ खड़ी है ,यह तो भारत माता है।
हम सब इसी के छत्र-छावँ मे,यही हमे तो भाता है।
इसने कितने झंझा झेले , तूफानों को ठेला है।
तब कहीं जाकर माता ने बच्चों से यह बोला है।
तुम सब मेरे हो बच्चे ,तुम बनों प्यार के सच्चे।
मत डरो पुत्र तुम अपना ,हक़ के खातिर लड़ जाओ।
आएंगे कितने झोंके ,जो तुम्हें मार्ग से रोकें।
तुम मत पड़ना झोकों में ,बस अपना काम सांवरो ।
कहने को लोग कहेंगे ,तुम बौराये ,अनपढ़ हो।
मत झिझक के बातें करना ,तुम स्वतन्त्र भारतीय ठहरे।
कहने दो तुम उनको भी ,वह चाहे जो भी समझें।
पर हम सब को है दिखाना ,तुम पूछ करो ही सबकुछ।
ऐसा न होने पाए ,जनता सवाल -उत्तर दे ।
वह बैठ कुर्सी पर ऐठे ,बैठे ही हुकुम चलाएं।
उनसे पूछो तुम भाई -वह अपना कुनबा खोले।
जनता से पूछें पैसा -अपने में दांव को खेलें।
हम सब इसी के छत्र-छावँ मे,यही हमे तो भाता है।
इसने कितने झंझा झेले , तूफानों को ठेला है।
तब कहीं जाकर माता ने बच्चों से यह बोला है।
तुम सब मेरे हो बच्चे ,तुम बनों प्यार के सच्चे।
मत डरो पुत्र तुम अपना ,हक़ के खातिर लड़ जाओ।
आएंगे कितने झोंके ,जो तुम्हें मार्ग से रोकें।
तुम मत पड़ना झोकों में ,बस अपना काम सांवरो ।
कहने को लोग कहेंगे ,तुम बौराये ,अनपढ़ हो।
मत झिझक के बातें करना ,तुम स्वतन्त्र भारतीय ठहरे।
कहने दो तुम उनको भी ,वह चाहे जो भी समझें।
पर हम सब को है दिखाना ,तुम पूछ करो ही सबकुछ।
ऐसा न होने पाए ,जनता सवाल -उत्तर दे ।
वह बैठ कुर्सी पर ऐठे ,बैठे ही हुकुम चलाएं।
उनसे पूछो तुम भाई -वह अपना कुनबा खोले।
जनता से पूछें पैसा -अपने में दांव को खेलें।
शेष कल......
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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