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Monday, January 2, 2017

नव नूतन की देके बधाई

नव नूतन की देके बधाई ,
उसने कुछ मनुहार किया। 
जैसे उंगली से गालों पर ,
उसने थोड़ा वार किया। 
मन के तार हुए तरंगित ,
मन में कोई भाव जगा। 
पर दुनिया की लाचारी में ,
दोनों एकदम संयत थे। 
भीतर में जो प्रेम फुटा था,
उसको भीतर में रक्खा। 
फिर दोनों उठ खड़े हुए यूँ ,
चले गए निज राहों पर। 
पर जब घर पहुंचे वह दोनों ,
अंकुर फूटा  प्रेमों का। 
अकुलाय मन ,बौराया तन ,
पर सब कुछ था सधा-सधा। 
                  नव नूतन की देके बधाई ,
                  उसने कुछ मनुहार किया। 
 



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -  

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