नव नूतन की देके बधाई ,
उसने कुछ मनुहार किया।
जैसे उंगली से गालों पर ,
उसने थोड़ा वार किया।
मन के तार हुए तरंगित ,
मन में कोई भाव जगा।
पर दुनिया की लाचारी में ,
दोनों एकदम संयत थे।
भीतर में जो प्रेम फुटा था,
उसको भीतर में रक्खा।
फिर दोनों उठ खड़े हुए यूँ ,
चले गए निज राहों पर।
पर जब घर पहुंचे वह दोनों ,
अंकुर फूटा प्रेमों का।
अकुलाय मन ,बौराया तन ,
पर सब कुछ था सधा-सधा।
नव नूतन की देके बधाई ,
उसने कुछ मनुहार किया।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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