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Sunday, January 29, 2017

यह संगम त्रिवेणी है


यह धरती ,यह प्रयाग-यह संगम त्रिवेणी है। 
जहँ पर लगा है मेला -श्रद्धा की पुंज का। 
आये हैं भक्त कितने -आस्था से मगन हो। 
यहँ पर बसेरा माघ का-उत्सव का पर्व है। 
देखो है सन्त जमघट-तम्बू का शहर है। 
आते यहाँ निरंतर -देशों से लोग भी। 
परसन यहाँ पे होता-मानव के पुंज का। 
श्रद्धा से नत हुए हैं-सभी प्रेम से यहाँ। 
रहते हैं ,कर रहें हैं -निज शुद्ध आत्मा। 
उनको भरोसा है यहाँ-सब पाप कटेंगे। 
नित प्रात उठ इसी से-वो गंगा नहाते हैं। 
जीवन तो सफल हैं यहाँ ,सब पुण्य पाते हैं। 
देते हैं दान जी भर ,संचित है जो किया। 
अंतिम दिवस रवानगी का-है बहुत सुखद। 
करते हैं दीपदान ,गोदान-बहुत कुछ। 
माँ गंग को नवां के शीश-घर वो चल दिए। 
दुनिया की बात में रमें ,फिर जी रहे वहां। 
मेला है माघ का या जीवन का खेल है। 
ऐसे ही चलता जीवन ,मेला का मेल है।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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