जहँ पर लगा है मेला -श्रद्धा की पुंज का।
आये हैं भक्त कितने -आस्था से मगन हो।
यहँ पर बसेरा माघ का-उत्सव का पर्व है।
देखो है सन्त जमघट-तम्बू का शहर है।
आते यहाँ निरंतर -देशों से लोग भी।
परसन यहाँ पे होता-मानव के पुंज का।
श्रद्धा से नत हुए हैं-सभी प्रेम से यहाँ।
रहते हैं ,कर रहें हैं -निज शुद्ध आत्मा।
उनको भरोसा है यहाँ-सब पाप कटेंगे।
नित प्रात उठ इसी से-वो गंगा नहाते हैं।
जीवन तो सफल हैं यहाँ ,सब पुण्य पाते हैं।
देते हैं दान जी भर ,संचित है जो किया।
अंतिम दिवस रवानगी का-है बहुत सुखद।
करते हैं दीपदान ,गोदान-बहुत कुछ।
माँ गंग को नवां के शीश-घर वो चल दिए।
दुनिया की बात में रमें ,फिर जी रहे वहां।
मेला है माघ का या जीवन का खेल है।
ऐसे ही चलता जीवन ,मेला का मेल है।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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