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Saturday, January 7, 2017

बुद्धि विलासी इस कविता में

बुद्धि विलासी इस कविता में ,
श्रद्धा का है भाव कहाँ ?
वह तो तना खड़ा है पौधा ,
उसमें रुनझुन ,त्रास कहाँ ?
वह तो आज की समतल नारी ,
प्रेम तत्व का राग कहाँ ?
बनी प्रोफेशनल आज की नारी ,
उसमे वह अनुराग कहाँ ?
फट-फट दौड़े ,झट-पट निपटे ,
उसमे धैर्य का भाव कहाँ ?
रोज सवेरे चाय की प्याली ,
नयनों में सपनों की बुनावट ,
ह्रदयवाद की गहराई में ,
डूबे कहाँ ,बुद्धि के बल पर ,
जोड़ -तोड़ की जुगती पाले ,
दौड़ रही है यहाँ-वहां ?
इसीलिए राहों में मिलते ,
दोहन करने वाले बहुत।
कहाँ-कहाँ की बात बताऊँ ,
सब तो यहाँ गड्डम-गड्ड !






उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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