तुम बतलाओ प्रेम की डोरी ,
कहाँ से जाए कहाँ तलक ।
क्यों अम्बर से तारा टूटे ,
क्यों बातें हों फ़लक़-तलक़ ।
रूहानी मौसम में बोलो ,
कहाँ मिलेगी अलक-पलक ।
सब बातें हैं दुनिया में तो ,
किस्सा-कहानी अलट -पलट ।
मुरीदी सब उसके बोलो ,
मुख से मत कुछ बात कहो ।
रहना सहना यही जगत में ,
उससे मत दो हाथ करो ।
वह तो बौराया है पंछी ,
सभी को देखे उलक-पुलक ।
ऐसे ही लोगों की दुनिया में ,
फ़रमाइश अटक-पटक ।
उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
No comments:
Post a Comment