क्यों उदास रहता है तन-मन ,
तुम बिन सखी अधूरा जीवन।
भावों के इस मन-सागर में,
छम-छम ,रुन-झुन ,कोई न धुन।
ऐसे में सखि जीवन केवल ,
किसी तपस्वी सा ही लगता।
तप ,जीवन को तपा-तपा कर ,
क्या दुनियावी बातें होंगी।
तुम जब साथ नहीं हो भोली ,
रात-दिवस सब पानी-पानी।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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