poem by Umesh chandra srivastava
मैं अयोध्या हूँ ,
तुलसी बाबा ने मण्डित किया मुझे।
(2)
मुझे लगता है ,
कि लोग बेवजह ,
मुझे और मेरे नाम को ,
मथ रहे हैं।
राम हुए थे ,
जन्म भूमि यही है ,
तो राम ,तो राममय हैं।
कहीं भी ,कभी भी ,
उन्हें बसाया , रमाया ,
और पूजा जा सकता है।
वही हाल मस्जिद का भी है ,
वह भी मुस्लिम सम्प्रदाय में ,
रचा बसा है।
कहीं भी ,कभी भी ,
उसको भी रचाया, बनाया ,
और बसाया जा सकता है।
पर फिजूल में लोग ,
रगड़ रहे ,झगड़ रहे !
क्या हासिल होगा ?
मंदिर,मस्जिद -चाहे जहाँ हो ,
उसके प्रति निष्ठा ,
और विश्वाश होना जरूरी है।
लेकिन वह प्रेम कहाँ है ?
जो दोनों सम्प्रदाय की नियति है।
वह शांति कहाँ है ?
जो दोनों संप्रदाय की प्रतीती है।
मैं बड़े असमंजस में हूँ !
क्या करूं ,मैं तो अयोध्या हूँ ,
राम के अस्तित्व का गवाह !
वास्तव में राम को ,
प्रतिष्ठित किया बाल्मीकी जी ने।
न जाने कितनी भाषाओँ में ,
कितने धर्म-दर्शन में ,
राम को केंद्र में रख कर ,
राम कथा-कहानी ,
गायी गयी।
लगभग सबने ,
राम की जन्मभूमि ,
मैं अयोध्या हूँ ,
तुलसी बाबा ने मण्डित किया मुझे।
(2)
मुझे लगता है ,
कि लोग बेवजह ,
मुझे और मेरे नाम को ,
मथ रहे हैं।
राम हुए थे ,
जन्म भूमि यही है ,
तो राम ,तो राममय हैं।
कहीं भी ,कभी भी ,
उन्हें बसाया , रमाया ,
और पूजा जा सकता है।
वही हाल मस्जिद का भी है ,
वह भी मुस्लिम सम्प्रदाय में ,
रचा बसा है।
कहीं भी ,कभी भी ,
उसको भी रचाया, बनाया ,
और बसाया जा सकता है।
पर फिजूल में लोग ,
रगड़ रहे ,झगड़ रहे !
क्या हासिल होगा ?
मंदिर,मस्जिद -चाहे जहाँ हो ,
उसके प्रति निष्ठा ,
और विश्वाश होना जरूरी है।
लेकिन वह प्रेम कहाँ है ?
जो दोनों सम्प्रदाय की नियति है।
वह शांति कहाँ है ?
जो दोनों संप्रदाय की प्रतीती है।
मैं बड़े असमंजस में हूँ !
क्या करूं ,मैं तो अयोध्या हूँ ,
राम के अस्तित्व का गवाह !
वास्तव में राम को ,
प्रतिष्ठित किया बाल्मीकी जी ने।
न जाने कितनी भाषाओँ में ,
कितने धर्म-दर्शन में ,
राम को केंद्र में रख कर ,
राम कथा-कहानी ,
गायी गयी।
लगभग सबने ,
राम की जन्मभूमि ,
अयोध्या ही बतायी ।
शेष कल......
उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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