poem by Umesh chandra srivastava
(1)
राजनीति और धर्म का कैसा, रंग चढ़ा है ड्योढ़ी पर।
धर्म धुरंधर राजनीति में, कैसे आये ट्योढी पर।
उधर देख लो धर्म चितेरक़, क्या-क्या कहते यहाँ-वहां ?
मगर बदलना चाह रहे हैं, राजनीति को पौड़ी पर।
जहाँ-जहां पर धर्म मुलम्मा ,राजनीति है वहां कहाँ ?
पर कलयुग आया है भईया ,गड्ड-मड्ड है चारों ओर।
धर्म धुरंधर भाग रहे हैं, राजनीति है यहां-वहां ?
(3)
कहने को योगी ने साधा ,साध्य-साधना जीवन में।
लकुटी लेकर निकल पड़ा वह ,दिव्य दृष्टि की खोजों में।
पर भ्रमवश वह राजनीति के, चौराहे पर ठिठक गया।
अब बतलाओ मेल कहाँ है ,धर्म धुरंधर हैं रण में।
(4)
कहने को वह भोग-वोग को ,त्याग के आये धर्मों में।
पर बतलाओ यही था करना, तो घर-बार को छोड़ा क्यों ?
अगर थी चाहत राजभोग की ,धर्मयोग अपनाया क्यों ?
कैसे सुधरे जगत हमारा ,धर्म धुरंधर कुछ सोचो।
(1)
राजनीति और धर्म का कैसा, रंग चढ़ा है ड्योढ़ी पर।
धर्म धुरंधर राजनीति में, कैसे आये ट्योढी पर।
उधर देख लो धर्म चितेरक़, क्या-क्या कहते यहाँ-वहां ?
मगर बदलना चाह रहे हैं, राजनीति को पौड़ी पर।
(2)
कौन उन्हें अब यह बतलाये ,दो नावों पर पांव कहाँ ?जहाँ-जहां पर धर्म मुलम्मा ,राजनीति है वहां कहाँ ?
पर कलयुग आया है भईया ,गड्ड-मड्ड है चारों ओर।
धर्म धुरंधर भाग रहे हैं, राजनीति है यहां-वहां ?
(3)
कहने को योगी ने साधा ,साध्य-साधना जीवन में।
लकुटी लेकर निकल पड़ा वह ,दिव्य दृष्टि की खोजों में।
पर भ्रमवश वह राजनीति के, चौराहे पर ठिठक गया।
अब बतलाओ मेल कहाँ है ,धर्म धुरंधर हैं रण में।
(4)
कहने को वह भोग-वोग को ,त्याग के आये धर्मों में।
पर बतलाओ यही था करना, तो घर-बार को छोड़ा क्यों ?
अगर थी चाहत राजभोग की ,धर्मयोग अपनाया क्यों ?
कैसे सुधरे जगत हमारा ,धर्म धुरंधर कुछ सोचो।
उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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