poem by Umesh chandra srivastava
दिल,जिगर ,मोहब्बत सब नाम करता हूँ ,
तुमको प्रिये मैं झुक के सलाम करता हूँ।
तुम तो बुत नहीं ,हक़ीक़त हो जहाँ की ,
तुमको अदा से मैं यह पैगाम देता हूँ।
तुम तो रहो जहाँ भी ,मैं खुश हूँ यहाँ ,
हर रोज़ ,हर पहर ,तुम्हें याद करता हूँ।
मन में कुछ शरारत ,तेरी बात पर हुई ,
लेकिन खुदा कसम मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।
वो बात थी मगर ,वो चन्द रोज़ ही रही ,
अब तो गिले को छोडो ,यह बयान करता हूँ।
दिल,जिगर ,मोहब्बत सब नाम करता हूँ ,
तुमको प्रिये मैं झुक के सलाम करता हूँ।
तुम तो बुत नहीं ,हक़ीक़त हो जहाँ की ,
तुमको अदा से मैं यह पैगाम देता हूँ।
तुम तो रहो जहाँ भी ,मैं खुश हूँ यहाँ ,
हर रोज़ ,हर पहर ,तुम्हें याद करता हूँ।
मन में कुछ शरारत ,तेरी बात पर हुई ,
लेकिन खुदा कसम मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।
वो बात थी मगर ,वो चन्द रोज़ ही रही ,
अब तो गिले को छोडो ,यह बयान करता हूँ।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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