poem by Umesh chandra srivastava
(1)
दो पैरों वाला इंसान ,
बड़ा करामाती होता है!
चंगुल में फंसे नहीं ,
कि निगलने की फ़िराक में रहता।
क्योंकि उसका पेट बड़ा है ,
समुन्दर उसके आगे जीरो।
पूरा का पूरा आदम जात ,
आदमी कहाँ है-वह !
(2)
सपने को तुलसी बाबा ने ,
सत्य का जामा पहनाया।
त्रिजटा के मुख से उनने -
सीता को यह समझाया।
अब कहाँ-सच होते हैं सपने ,
देखिये-देश के कर्णधारों को।
कितने सपनें दिखाते हैं !
पर हक़ीक़त क्या वो सच हो पाते ?
अब जुमलों का जमाना आया ,
उनने सुना-उनने सुनाया।
बाकी जन-मन के समक्ष ,
सब फुर्र ,सब फुर्र।
सत्ता पाते ही-अपने में मस्त !
जनता मरे-खपे ,रहे त्रस्त !!
वह तो अपने में हैं अलमस्त !!!
वह तो अपने में हैं अलमस्त !!!
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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