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Thursday, March 9, 2017

दो कवितायेँ

poem by Umesh chandra srivastava 

             (1)
दो पैरों वाला इंसान ,
बड़ा करामाती होता है! 
चंगुल में फंसे नहीं ,
कि निगलने की फ़िराक में रहता। 
क्योंकि उसका पेट बड़ा है ,
समुन्दर उसके आगे जीरो। 
पूरा का पूरा आदम जात ,
आदमी कहाँ है-वह ! 

             (2)
सपने को तुलसी बाबा ने ,
सत्य का जामा पहनाया।  
त्रिजटा के मुख से उनने -
सीता को यह समझाया। 
अब कहाँ-सच होते हैं सपने ,
देखिये-देश के कर्णधारों को। 
कितने सपनें दिखाते हैं !
पर हक़ीक़त क्या वो सच हो पाते ?
अब जुमलों का जमाना आया ,
उनने सुना-उनने सुनाया।
बाकी जन-मन के समक्ष ,
सब फुर्र ,सब फुर्र। 
सत्ता पाते ही-अपने में मस्त !
जनता मरे-खपे ,रहे त्रस्त !!
वह तो अपने में हैं अलमस्त !!!




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

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