poem by Umesh chandra srivastava
ज़िन्दगी की डोर है ,
पतवार-जो भी है यहाँ।
सब हमारे ,
भाव का प्रतिरूप है।
उस नियंता पर रहें ,
कितना बताओ ,
कब तलक !
उसने हमको जन्म देकर ,
काम अपना कर दिया।
अब हमारा फर्ज है ,
हम भाव में-ऐसा बरें ,
सब जगत के तार को ,
झकझोर कर ,आगे बढ़े।
सब सहज हो ,काम अपना ,
कुछ निर्थक न रहे।
हम मनुज हैं ,
मनुज सा व्यवहार ,
आपस में करें।
ज़िन्दगी की डोर है ,
पतवार-जो भी है यहाँ।
सब हमारे ,
भाव का प्रतिरूप है।
उस नियंता पर रहें ,
कितना बताओ ,
कब तलक !
उसने हमको जन्म देकर ,
काम अपना कर दिया।
अब हमारा फर्ज है ,
हम भाव में-ऐसा बरें ,
सब जगत के तार को ,
झकझोर कर ,आगे बढ़े।
सब सहज हो ,काम अपना ,
कुछ निर्थक न रहे।
हम मनुज हैं ,
मनुज सा व्यवहार ,
आपस में करें।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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