poem by Umesh chandra srivastava
ज़िन्दगी का सफर यूँ ही कट जायेगा।
वो मुसीबत ,वो झगड़ा ,वो रगड़ा सनम ,
प्यार के आंच में सब पिघल जायेगा।
यह धरा है सुहानी, वो नीला गगन ,
वो चमकते सितारे, वो चंदा सनम।
ताप सूरज की कम हो , हवा भी चले ,
हम सुहाने सफर में यूँ ही घुल मिले।
आओ बैठे वो देखें-नज़ारा सनम ,
वो कहानी 'औ' किस्से मुखातिब हुए।
रोज ढल ही गया ,कल ढली बात क्या ,
अब तो आगे के कल का करें फैसला।
प्यार ही है जगत 'औ' जगत प्यार है ,
रौशनी में इसी के नाहाते चलो।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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