poem by Umesh chandra srivastava
फूल कांटे ज़िन्दगी में बहुत हैं मगर ,
तुम रहो साथ जीवन सफर जायेगा।
वो जो बाहें फैलाये खड़े सामने ,
उनके मुखड़ों का दर्पण उतर जायेगा।
सामने कुछ कहें, पीठ पीछे मगर ,
रुसवा करते हैं जाने क्यों लोग यहाँ ?
तुम साहारा बनो, मैं साहारा बनूँ ,
रूप दर्पण में देखो निखर जायेगा।
ज़िन्दगी का सफर साथ में ही कटे ,
सारे दुःख का मुहूर्त निकल जाएगा।
फूल कांटे ज़िन्दगी में बहुत हैं मगर ,
तुम रहो साथ जीवन सफर जायेगा।
वो जो बाहें फैलाये खड़े सामने ,
उनके मुखड़ों का दर्पण उतर जायेगा।
सामने कुछ कहें, पीठ पीछे मगर ,
रुसवा करते हैं जाने क्यों लोग यहाँ ?
तुम साहारा बनो, मैं साहारा बनूँ ,
रूप दर्पण में देखो निखर जायेगा।
ज़िन्दगी का सफर साथ में ही कटे ,
सारे दुःख का मुहूर्त निकल जाएगा।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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