poem by Umesh chandra srivastava
हम तो कविता रचायें भला किस लिए।
मन है दर्पण तेरा ,स्वच्छ ही दीखता ,
उसमें छवि हम बसाएं भला किस लिए।
रोज कहती हो तुम 'हम तुम्हारे लिए ',
अब यह मुखड़ा सुनाएँ तुम्हें किस लिए।
माना संशय ज़रा मनु का जैसा हुआ ,
अब तो श्रद्धा जगाएं तुम्हारे लिए।
तुम तो कहती सदा ,श्याम तुम हो मेरे ,
तुमको राधा बनायें भला किस लिए।
वो पहर याद तुमको भी होगा ज़रूर ,
प्रेम रस में नहाएं भला किस लिए।
प्रेम पींगों की हो ,फूल सेज बनें ,
आओ गुल कुछ खिलायें तुम्हारे लिए।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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