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Wednesday, March 8, 2017

रूप की माधुरी तुम तो बैठी वहां

poem by Umesh chandra srivastava 

रूप की माधुरी तुम तो बैठी वहां ,
हम तो कविता रचायें भला किस लिए। 
मन है दर्पण तेरा ,स्वच्छ ही दीखता ,
उसमें छवि हम बसाएं भला किस लिए। 
रोज कहती हो तुम 'हम तुम्हारे लिए ',
अब यह मुखड़ा सुनाएँ तुम्हें किस लिए। 
माना संशय ज़रा मनु का जैसा हुआ ,
अब तो श्रद्धा जगाएं तुम्हारे लिए। 
तुम तो कहती सदा ,श्याम तुम हो मेरे ,
तुमको राधा बनायें भला किस लिए। 
वो पहर याद तुमको भी होगा ज़रूर ,
प्रेम रस में नहाएं भला किस लिए। 
प्रेम पींगों की हो ,फूल सेज बनें ,
आओ गुल कुछ खिलायें तुम्हारे लिए। 



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

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