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Tuesday, March 7, 2017

तुम कृष्णा की राधा बन कर

poem by Umesh chandra srivastava

तुम कृष्णा की राधा बन कर ,
नाच रही हो छनन-छनन। 
मैं कृष्णा की बांसुरिया बन ,
तुम को देखूँ मगन-मगन। 
होली का त्यौहार है आया ,
आओ थोड़ा रंग-गुलाल। 
प्रेम भाव का सुन्दर मौसम ,
छोड़ मिले हम सभी मलाल। 
वह देखो नन्दन वन बिहंसा ,
ठुमक रहा है पंचम ताल। 
आज तुम्हारी सुधि आयी है ,
कृष्णा तेरी होली कमाल। 
रंग में रंगते ऐसे-ऐसे ,
गोप गोपियाँ बहकी चाल। 
आंख का अंजन अधर लगा के  ,
देखो कैसे करती धमाल। 
वाह रे ! मोहन तेरी बंसी ,
रंग में रंगी सुनाये टेर। 
ओ बंसीघन पनघट वाले  ,
छप-छप खेलें होली मराल। 
होली के तुम असल होलारी ,
तुम बिन होली कहाँ मजाल। 
प्रेम रूप मन स्वच्छ तुम्हारा ,
जिसमें बसता गोकुल ताल । 
वाह रे ! बंसी वाले नटखट ,
मलो गुलाल सब होयें निहाल। 




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava

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