poem by Umesh chandra srivastava
नाच रही हो छनन-छनन।
मैं कृष्णा की बांसुरिया बन ,
तुम को देखूँ मगन-मगन।
होली का त्यौहार है आया ,
आओ थोड़ा रंग-गुलाल।
प्रेम भाव का सुन्दर मौसम ,
छोड़ मिले हम सभी मलाल।
वह देखो नन्दन वन बिहंसा ,
ठुमक रहा है पंचम ताल।
आज तुम्हारी सुधि आयी है ,
कृष्णा तेरी होली कमाल।
रंग में रंगते ऐसे-ऐसे ,
गोप गोपियाँ बहकी चाल।
आंख का अंजन अधर लगा के ,
देखो कैसे करती धमाल।
वाह रे ! मोहन तेरी बंसी ,
रंग में रंगी सुनाये टेर।
ओ बंसीघन पनघट वाले ,
छप-छप खेलें होली मराल।
होली के तुम असल होलारी ,
तुम बिन होली कहाँ मजाल।
प्रेम रूप मन स्वच्छ तुम्हारा ,
जिसमें बसता गोकुल ताल ।
वाह रे ! बंसी वाले नटखट ,
मलो गुलाल सब होयें निहाल।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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