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Sunday, March 12, 2017

नज़रों से होली खिली गयी

poem by Umesh chandra srivastava 

नज़रों से होली खिली गयी ,
नज़राना होली का दे दो। 
वह फूल कहाँ-होली मौसम ,
रंगों में बिखरा इधर-उधर। 
पंखुड़ियां फूलों की बिखरीं ,
कुछ लाल-वाल ,पीले-पीले। 
मलमल के नहलाया उसको ,
रंगत में रँगा ,बौराया मन। 
कुछ भंग चढ़ी ,कुछ अंग लड़ी ,
सब कुछ होली में सम्भव है। 
बस प्रेम की पिचकारी होली ,
होली में बबुआ-बबुनी हैं। 
उमरों का झोका भी होली ,
होली में सब रंग मिल जाते। 
अबीर गुलाल की यह होली ,
होली में दिल सब खिल जाते। 
होली में टोली रंगों की ,
जो पकड़-पकड़ रंग खुब डालें। 
होली की बाजीगरी यही ,
सब प्रेम प्यार से खिल जाते। 



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava

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