poem by Umesh chandra srivastava
नज़राना होली का दे दो।
वह फूल कहाँ-होली मौसम ,
रंगों में बिखरा इधर-उधर।
पंखुड़ियां फूलों की बिखरीं ,
कुछ लाल-वाल ,पीले-पीले।
मलमल के नहलाया उसको ,
रंगत में रँगा ,बौराया मन।
कुछ भंग चढ़ी ,कुछ अंग लड़ी ,
सब कुछ होली में सम्भव है।
बस प्रेम की पिचकारी होली ,
होली में बबुआ-बबुनी हैं।
उमरों का झोका भी होली ,
होली में सब रंग मिल जाते।
अबीर गुलाल की यह होली ,
होली में दिल सब खिल जाते।
होली में टोली रंगों की ,
जो पकड़-पकड़ रंग खुब डालें।
होली की बाजीगरी यही ,
सब प्रेम प्यार से खिल जाते।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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