month vise

Friday, March 17, 2017

संसार में सुन्दर नर-तन है

poem by Umesh chandra srivastava 

संसार में सुन्दर नर-तन है ,
नर-तन की सुन्दर अनुभूति। 
इस अनुभूति से उपजे सब ,
चाहे देवों का चरणामृत। 

नर में ही विचारों का गुच्छा ,
अभिव्यक्ति की-अविरल क्षमता। 
जो चाहे सोचे नर-तन यह ,
अभिव्यक्ति में संयम करके,
वह व्यक्त करे जो जन हित हो ,
उसमें ही अमरता मिलती है ,
कहने को शरीर ही मरता है। 

पर कर्म सदैव अमर है यहाँ ,
इसके खातिर नर जीता है। 
बस लोभ-मोह को गर त्यागे ,
इसके चलते नर-विरक्ति को ,
पाल पास व्यापक करता। 
गर इससे छुटकारा हो तो ,
नर देव समान स्वयं होता। 

देवों का यही विधान यहाँ ,
वह कर्म भोग में लिप्त कहाँ ?
जो भी इसमें गर पड़ जाता ,
तो दण्ड का भागी वह होता। 

जीवन तो बहता स्रोता है ,
बस शुद्ध जलों का मंचन कर। 
खुद सब मिलजायेगा नर-तन ,
यह लोक-परलोक की महिमा है। 




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...