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Thursday, March 23, 2017

मन पंछी उड़-उड़ जाता है

poem by Umesh chandra srivastava

मन पंछी उड़-उड़ जाता है ,
कैसे उसे सम्हालूँ मैं।
भोर पहर के उच्चाटन को,
कैसे कहाँ निहारूँ मैं।

सूदिन बेल के यह प्रभात था ,
मन को बहुत लुभाता था।
रात की बातें कैसे बताऊं ,
भोर पहर मुस्काता था।

अनबोलों के मुख भी खुलते ,
कहते कैसे रहते हो।
क्या बतलाऊँ मन सावन में ,
क्या कुछ बात बताऊँ मैं ?




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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