poem by Umesh chandra srivastava
(1)
घड़ा बदलने से क्या होगा ?
पानी वही पुराना है !
गर पानी का शोधन करके ,
पवित्र जलों का हो मिश्रण।
तब तो बात बनेगी, यारों।
वरना चलने दो , वैसा ही-
जैसा चलता , रहा अब तक !
(2)
बात पते की कहना अच्छा ,
बड़ा सुहाना लगता है।
मंत्रों से शुद्धि कर रहना ,
बड़ा सुहाना लाता है।
मगर दिखावा से क्या होगा ?
कुछ तो नया करो बंधू !
साधु-सन्त की बेल पुरानी ,
संस्कार की नई रवानी ,
सुध-बुध , याद पुरानी अपनी ,
कितना-कितना गुच्छा है।
पर गुच्छे में नव नूतन के -
फूल नए कुछ खिल जाएँ !
तब तो बात समझ कुछ आये ,
वरना करो प्रलाप ,
दिखाओ अच्छा-अच्छा ,
क्या मतलब है , क्या मतलब है ?
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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