poem by Umesh chandra srivastava
प्यारे जग के लोग करें।
पर बतलाओ कौन सा जन है ,
जो इस जग का अधर धरे।
अधर प्रेम का प्रस्फुटन है ,
यही चलता ,दृष्टि दे।
अधरों का अधरामृत कितना ,
नर-तन को खूब भाता है।
देखो अधर बिंदु पर कान्हा ,
मुरली धर कर टेर रहे।
और उसी टेरो में राधा ,
सुध-बुध खोकर झूम रही।
अधरों का बांकापन ऐसा ,
बड़े-बड़े आकर्षित हों।
झूमें , रमें हैं इन अधरों पे ,
देखो शक्ति मुस्काती।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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