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Friday, March 10, 2017

आज बरस होली का आया

poem by Umesh chandra srivastava 

आज बरस होली का आया ,
प्रीतम तुम बिन घर सूना। 
पापड़ ,चिप्स कहाँ बन पाया ,
सब कुछ लगा अधूरा सा। 

तुम रहते थे मन लगता था ,
आलू बोरे-बोरे आता। 
सुधियों का वह मंजर आलम ,
गया ,नहीं क्या आएगा ?

तुम बिन आंगन ,कोना सूना ,
सब कुछ तीतर-बितर सा है। 
कहाँ गए परदेसी निर्मोही ,
तुमने तो जग छोड़ दिया। 

कहाँ से लाऊं तुम जैसा मैं ,
जो घर, होली सँवारे। 
पौध-पौध में थिरकन तेरी ,
तेरी बगिया सुधारे। 

यह तो मोल नहीं मिलता है ,
प्रेम तो शाश्वत पौधा है। 
उसका तौल कहाँ इस जग में ,
तुम तो गए ,कहाँ अब हो ?





उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

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