poem by Umesh chandra srivastava
मिलते रहोगे ज़िन्दगी गुलज़ार रहेगी ,
उल्फत की हक़ीक़त से दो चार रहेगी।
वैसे तो गम बहुत हैं इस नूर जहाँ में ,
प्रेमों का समुन्दर तो बस एक जगह है।
कहते हैं उसे ताजमहल, प्रेम इबारत ,
बनवाया गया था उसे ,वह प्रेम निशानी।
जितने भी लोग प्रेम के हैं प्रेम पुजारी ,
उन सब के अरमानों का यह ताजमहल है।
खुशबू है आज भी वहां ,सोंधी सी महक है ,
इशरत वहां मिलती है ,वह प्रेम का दर्पण।
बनवाया शहंशाह ने वह प्रेम निशानी ,
जितने भी वशर आज वहां आते जाते हैं।
सब ही तो वहां प्रेम का इज़हार पाते हैं ,
कुछ भी कसम नहीं है सब साफ-साफ है।
उल्फत की निशानी रही ,उल्फत ही रहेगी।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
No comments:
Post a Comment