कुछ तो माँ का वन्दन कर लें ,
रोली ,चन्दन ,हल्दी है।
पूजा की सामग्री सब कुछ ,
आरती थाल सजी देखो।
माँ की मूरत में निखरने तो,
सूरत को फीका करते ।
क्यों न ऐसा हो-मेरे बन्धु ,
माँ ही लेखन देती है।
उसके बिना जगत में चलना ,
रुक-रुक बातें-वातें लिखना।
बड़ा मनोहर सुखद हुआ।
माँ तो साक्षात रहती है ,
कलमों ,मन के पोरों में।
उसने शब्द ,वाक्य सब गढ़ना ,
हमको सरल सिखाया है।
माँ के आँचल में वंशीवट ,
राम-रहीम सुखद रहते।
माँ से ही चलता सारा युग ,
माँ के चरणों में सब अर्पण।
ज्ञान पुंज ,सब मन विचार 'औ',
माँ ही देती चिंतन है।
अंदर की सारी अनुभूती ,
माँ पर वार ,न्योछावर है।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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