poem by Umesh chandra srivastava
छंदों का मतलब वेद ,वर्ण ,
छंदों में मात्राएँ , गिनती।
सब सरल , सुलभ बातों का रंग ,
नयी कविता की सुर है सरिता ।
जो भी न बहा-इस रस में तो ,
उसका जीवन साकार कहाँ।
मत तुम छेड़ो वह छंद शास्त्र ,
तुम ही बोलो क्या मानव भी ?
सब शास्त्र-वास्त्र चुन रहते हैं ,
तब बात यहां किन छंदों की।
वह युग था, युग के साथ गया ,
नवयुग में हो, नवयुग धारा।
अपनी बातों का लिखो बिम्ब ,
तुक-तुक-तुकांत में न पड़ के।
अपनी कविता में रह अनंद ,
कहने दो, उनको कहने दो।
वह अपनी बात सँवारेंगे ,
निज रस में डूबे वो तो हैं।
उनको-उनमें ही रमने दो ,
तुम अपनी बात कहो वैसे।
जैसे तुम कहना चाह रहे ,
मत उनके चक्कर में पड़के।
तुम अपना मार्ग बनाओ खुद ,
समझो तुम वह भी तुम जैसे।
वह कोई नहीं नियंता हैं ,
वह भी तो केवल अभियंता।
परमार्थ बात के चक्कर में,
तुम मत भ्रम पालो यहाँ रहो।
अपनी बातों को लयता से ,
तुम कहो-रहो और खूब कहो।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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