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Sunday, February 12, 2017

छंदों का मतलब वेद ,वर्ण-3

poem by Umesh chandra srivastava

छंदों का मतलब वेद ,वर्ण ,
छंदों में मात्राएँ , गिनती। 



सब सरल , सुलभ बातों का रंग ,
नयी कविता की सुर है सरिता ।  
जो भी न बहा-इस रस में तो ,
उसका जीवन साकार कहाँ। 

मत तुम छेड़ो वह छंद शास्त्र ,
तुम ही बोलो क्या मानव भी ?
सब शास्त्र-वास्त्र चुन रहते हैं ,
तब बात यहां किन छंदों की। 

वह युग था, युग के साथ गया ,
नवयुग में हो, नवयुग धारा। 
अपनी बातों का लिखो बिम्ब ,
तुक-तुक-तुकांत में न पड़ के। 

अपनी कविता में रह अनंद ,
कहने दो, उनको कहने दो। 
वह अपनी बात सँवारेंगे ,
निज रस में डूबे वो तो हैं। 

उनको-उनमें ही रमने दो ,
तुम अपनी बात कहो वैसे। 
जैसे तुम कहना चाह रहे ,
मत उनके चक्कर में पड़के। 

तुम अपना मार्ग बनाओ खुद  ,
समझो तुम वह भी तुम जैसे। 
वह कोई नहीं नियंता हैं ,
वह भी तो केवल अभियंता। 

परमार्थ बात के चक्कर में,
तुम मत भ्रम पालो यहाँ रहो। 
अपनी बातों को लयता से ,
तुम कहो-रहो और खूब कहो। 




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava

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