poem by Umesh chandra srivastava
माँ के मुखड़े पे सारा जहाँ खिल गया।
माँ का स्नेह ,कोमल ,छलकता वह प्रेम,
माँ के आँचल में सारा जहाँ मिल गया।
माँ के नयनों में दर्पण सा सब कुछ लगे ,
माँ का स्पर्श ,मानों कमल खिल गया।
माँ हमेशा यह सोचे ,मेरे लाल को ,
कोई तकलीफ न हो, वो सच्चा बने।
हम घड़े माटी के ,माँ सँवारे हमें ,
फूल सा वह तो पाले, जगत खिल गया।
माँ-दुआएं हमेशा बरसती रहें।
माँ बदौलत ही बच्चा, शिखर बन गया।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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