poem by Umesh chandra srivastava
कविता की कुछ बात करें।
वह कविता-सविता सी बहती ,
आज जरा दो हाथ करें।
रूप बिम्ब की सुन्दर बानी ,
देखो-वह कविता की रानी।
राजा के संग नाच रही है ,
वह तो कहते ,बन्द-वन्द हो।
छंदों का खूब घेरा हो ,
मैं तो कहता-बात साफ हो।
कोई नहीं घनेरा हो।
रूप कवित्री की वह बातें ,
जिसमें पूर्ण समर्पण है।
लय है ,धुन है ,भाव सुनहरे ,
कोई बंद नहीं तो क्या ?
बात समझ में सब आती है ,
बोलो-क्या यह कविता नहीं।
तुम तो बड़े चितेरक़ ठहरे ,
कुछ बन्दों को गढ़ा बहुत।
पर बतलाओ क्या तुमने भी ,
जीवन में बंदिश झेली।
अगर नहीं-तो यहाँ बताओ ,
बन्दिश की क्यों बात करें ?
आओ चले वहां मुखरित है ,
जीवन की सब सौगातें।
आओ टहल वहां भी आएं ,
जहां गुलों की कलियाँ हैं।
कुछ तो लय में ,बाकी बेलय ,
लेकिन सब तो सुन्दर हैं।
अब बतलाओ , वहां की बातें ,
कविता में डालें कैसे ?
मत तुम बनो यहाँ डिक्टेटर ,
तुम कविता के नहीं कलेक्टर।
बाकी तो सब ठीक रहा ,
चलने दो, जैसा चलता है।
कहने दो ,जैसा कहता है ,
कविता नहीं तो और है क्या ?
उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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