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Monday, February 27, 2017

आज दिवस कविता का बोलो

poem by Umesh chandra srivastava

आज दिवस कविता का बोलो ,
कविता की कुछ बात करें। 
वह कविता-सविता सी बहती ,
आज जरा दो हाथ करें। 

रूप बिम्ब की सुन्दर बानी ,
देखो-वह कविता की रानी। 
राजा के संग नाच रही है ,
वह तो कहते ,बन्द-वन्द हो। 
छंदों का खूब घेरा हो ,
मैं तो कहता-बात साफ हो। 
कोई नहीं घनेरा हो। 
रूप कवित्री की वह बातें ,
जिसमें पूर्ण समर्पण है। 
लय है ,धुन है ,भाव सुनहरे ,
कोई बंद नहीं तो क्या ?

बात समझ में सब आती है ,
बोलो-क्या यह कविता नहीं। 
तुम तो बड़े चितेरक़ ठहरे ,
कुछ बन्दों को गढ़ा बहुत। 
पर बतलाओ क्या तुमने भी ,
जीवन में बंदिश झेली। 
अगर नहीं-तो यहाँ बताओ ,
बन्दिश की क्यों बात करें ?

आओ चले वहां मुखरित है ,
जीवन की सब सौगातें। 
आओ टहल वहां भी आएं ,
जहां गुलों की कलियाँ हैं। 
कुछ तो लय में ,बाकी बेलय ,
लेकिन सब तो सुन्दर हैं। 

अब बतलाओ , वहां की बातें ,
कविता में डालें कैसे ?
मत तुम बनो यहाँ डिक्टेटर ,
तुम कविता के नहीं कलेक्टर। 
बाकी तो सब ठीक रहा ,
चलने दो, जैसा चलता है। 
कहने दो ,जैसा कहता है ,
कविता नहीं तो और है क्या ?



उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava

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