poem by Umesh chandra srivastava
तू तो चतुर-वतूर ठहरी।
मैं तो चलता डगर पकड़ के ,
तू तो घूमे गली-गली।
तेरे रुनझुन के दीवाने ,
तुझको समझें कली-कली।
मैं तो बौराया हूँ पंछी ,
तुझको समझूं ह्रदयवली।
तुम तो मुक्त गगन सी लगती ,
कभी खुली, तो कभी बदली।
मैं तो उमड़ा वह बादल हूँ ,
तुमको देखूँ हली-हली।
तुम तो समझ परे सी लगती ,
क्या - क्या तुमको नाम मैं दूँ ?
सदा रहो खुशहाल जहाँ भी ,
तुम तो मेरी वली-वली।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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