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Friday, February 17, 2017

अकेले ही पथ पे

poem by Umesh chandra srivastava 

अकेले ही पथ पे ,है चलना अकेले ,
अकेले ही आए ,अकेले ही जाना।
यहां मान-सम्मान देते बहुत हैं ,
मगर ध्येय केवल ,है चलना अकेले।
बहुत रंग दुनिया में देखो यहाँ पर ,
कोई पथ पे चलने की उम्मीद देगा।
कोई तुमसे भटकन की बातें करेगा ,
मगर तुम अडिग हो ,अकेले ही चलना।
उसी से मिलेगा सभी कुछ यहाँ पर ,
जहां की है बातें ,जहां वाले जाने।
जतन से ,लगन से, सभी काम करना ,
तभी ध्येय मिलेगा ,अकेले ही रहना।
ये साथी-सँघाती, सभी हैं तुम्हारे ,
मगर उनकी सीमा ,उसी से मुकरते।
तुम्हे लक्ष्य साधे , अकेले है चलना।
वो देखो, वो ध्रुव था ,अकेले चला था ,
मिला उसको गगनों में स्थान देखो।
चमकता सितारा अभी भी चमकता,
वह कहता अकेले की किस्सा कहानी ,
वही है निशानी, अकेले ही चलना।




 उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

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