वो मर रहा था देखो-तस्वीर ले रहे ,
मंज़र सड़क का था कुछ-तस्वीर ले रहे।
मानव यहाँ पे दृश्यलोक में ही ढल रहा ,
संवेदना अंतस की भला कहाँ खो गयी।
सोचो ज़रा -वह भाई,बहन कुछ तो कुछ तो है ,
अपना सगा नहीं है मगर वह वशर तो है।
कुछ सोच इस दिशा में-रंग और भी ढले ,
मानव से प्रेम मानव ,कुछ तो कुछ करे।
वरना अगर मंजर कभी-भी आप भी बने ,
सब देख के तस्वीर ले ,मस्त यूँ ही हों चले।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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