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Saturday, February 25, 2017

ये चन्दा, ये सूरज, नज़ारे जो सारे

poem by Umesh chandra srivastava 


ये चन्दा, ये सूरज, नज़ारे जो सारे,
नही अच्छे लगते, बिना ये तुम्हारे। 
तुम्हारी छवि पे सभी लगते बौने,
नही तुम तो कुछ भी, नही है सुहाता। 
वो बातें, वो राते सुलगती है मन में,
बहुत सोचता हु, मगर रहना पड़ता। 
तुम्हारी दीदारी से, उत्साह है आता,
तुम्हारे ही रहने से, जीवन लुभाता। 
मगर अब करे क्या, तुम्हारे बिना हम,
ये सागर,ये गागर, नही कुछ है भाता। 







उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

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