poem by Umesh chandra srivastava
प्रेम का यह दिवस ,सभी फूलें ,फलें ,
मन में प्रेमों का दर्पण सँवरता रहे।
माँ-सुता साथ हों ,पिता-पुत्र बढ़ें ,
पति-पत्नी में प्रेम का इज़हार हो।
प्रेमिका-प्रेम की डोर बनती रहे ,
इस उमर में तो प्रेमों की पेंग बढ़े।
यह जमाने का दस्तूर पहले रहा ,
प्रेम पावन रहे ,प्रेम बस प्रेम हो।
कोई इसमें बनावट ,सजावट नहीं,
प्रेम पुलकित रहे भाव अच्छे बने।
इसमें साथी रहें 'औ' संघाती तने ,
प्रेम दुनिया के नीले वितानों पे हो।
प्रेम उर्बी बने ,'औ ' प्रकृति हो सजन,
प्रेम थोथा बयारों सा न उड़ सके।
प्रेम का यह दिवस ,सभी फूलें ,फलें ,
मन में प्रेमों का दर्पण सँवरता रहे।
माँ-सुता साथ हों ,पिता-पुत्र बढ़ें ,
पति-पत्नी में प्रेम का इज़हार हो।
प्रेमिका-प्रेम की डोर बनती रहे ,
इस उमर में तो प्रेमों की पेंग बढ़े।
यह जमाने का दस्तूर पहले रहा ,
प्रेम पावन रहे ,प्रेम बस प्रेम हो।
कोई इसमें बनावट ,सजावट नहीं,
प्रेम पुलकित रहे भाव अच्छे बने।
इसमें साथी रहें 'औ' संघाती तने ,
प्रेम दुनिया के नीले वितानों पे हो।
प्रेम उर्बी बने ,'औ ' प्रकृति हो सजन,
प्रेम थोथा बयारों सा न उड़ सके।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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