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Sunday, February 26, 2017

जन-मन भाई रग-रग में

poem by Umesh chandra srivastava 

जन-मन भाई रग-रग में ,
सत्य,अहिंसा धरो मन में। 
पावन दृष्टि सुखद रहे ,
सत्य, अहिंसा भजो मन में। 

पशु,पक्षी जितने भी जीव ,
सबसे प्रेम करो मन से। 
जल ,जंगल ,उरवर ,भूमी ,
पर्वत सा रुख न हो मन में। 

प्रेम जगत की अद्भुत देन ,
इसे अपनाओ तन-मन में। 
कोई शत्रु नहीं यहाँ पर ,
सबमें प्रेम ,भरो मन में। 

देखोगे सब काम बने ,
सत्य दृष्टि रखो मन में। 
अहिंसक पथ अपनाओ तुम ,
सुख सम्पति सब है मन में। 


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

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