poem by Umesh chandra srivastava
सत्य,अहिंसा धरो मन में।
पावन दृष्टि सुखद रहे ,
सत्य, अहिंसा भजो मन में।
पशु,पक्षी जितने भी जीव ,
सबसे प्रेम करो मन से।
जल ,जंगल ,उरवर ,भूमी ,
पर्वत सा रुख न हो मन में।
प्रेम जगत की अद्भुत देन ,
इसे अपनाओ तन-मन में।
कोई शत्रु नहीं यहाँ पर ,
सबमें प्रेम ,भरो मन में।
देखोगे सब काम बने ,
सत्य दृष्टि रखो मन में।
अहिंसक पथ अपनाओ तुम ,
सुख सम्पति सब है मन में।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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