मिलते रहोगे बात ,अपने आप बनेगी ,
कुछ हम कहें ,कुछ तुम कहो, मुलाक़ात बढ़ेगी।
बस इस तरह से ज़िन्दगी में फूल खिलेगा ,
धरती में बीज डाल दो, पौधा ही उगेगा ।
सन जुस्तजू यहीं पर, संसार यही है ,
लोगों का आना-जाना, व्यवहार यही है।
तुम कहते रहो अपना-हम भी सुनाएंगे ,
दुनिया में लेना-देना चलता ही रहेगा।
वह आ गया-वह मिल गए- यह खेल है यहां ,
उस रूपसी का सुन्दर व्यव्हार यहाँ है।
उस घेर बिंदु में ही सफर कट रहा ,कटे ,
बस इसी छोर-ओर पे सौगात बनेगी।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
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