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Friday, February 24, 2017

शिवा तुमसे पूछूँ यही मैं सवाल

poem by Umesh chandra srivastava 

शिवा तुमसे पूछूँ यही मैं सवाल ,
तुम्हारी जगत में नहीं है मिसाल। 
तुम्हीं श्रद्धा-भक्ति ,तुम्हीं पालनहार ,
तुम्हारे से चलता जगत 'औ' संसार। 
कोइ दान देकर ,मगन हो रहा है ,
कोई दान लेकर सघन हो रहा है। 
तुम्हारे न जाने हैं कितने ही नाम ,
कोई रूद्र बोले ,कोई नीलकंठ -
सहत्रों ही नामों से तुमको प्रणाम।
तुम्हारे भरोसे ही जग ये चले ,
बताओ तुम्हीं एक मस्त मराल। 
भभूती रमें ,अंग-अंगों में तुम ,
'औ' रहते वहां जहँ नीला वितान। 
मगर सुध है सब की ,रचयिता हो तुम ,
तुम्हीं से उत्सर्जन,तुम्हीं से विसर्जन। 
तुम्हें कोटि बारंम है बार प्रणाम ,
जगत सत्य शिव हो ,तुम्हीं मात्र सुन्दर। 
तुम्हें है प्रणाम , तुम्हें है प्रणाम। 



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

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