poem by Umesh chandra srivastava
तुम्हारी जगत में नहीं है मिसाल।
तुम्हीं श्रद्धा-भक्ति ,तुम्हीं पालनहार ,
तुम्हारे से चलता जगत 'औ' संसार।
कोइ दान देकर ,मगन हो रहा है ,
कोई दान लेकर सघन हो रहा है।
तुम्हारे न जाने हैं कितने ही नाम ,
कोई रूद्र बोले ,कोई नीलकंठ -
सहत्रों ही नामों से तुमको प्रणाम।
तुम्हारे भरोसे ही जग ये चले ,
बताओ तुम्हीं एक मस्त मराल।
भभूती रमें ,अंग-अंगों में तुम ,
'औ' रहते वहां जहँ नीला वितान।
मगर सुध है सब की ,रचयिता हो तुम ,
तुम्हीं से उत्सर्जन,तुम्हीं से विसर्जन।
तुम्हें कोटि बारंम है बार प्रणाम ,
जगत सत्य शिव हो ,तुम्हीं मात्र सुन्दर।
तुम्हें है प्रणाम , तुम्हें है प्रणाम।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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