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Wednesday, February 15, 2017

नेताओ की ऊर्जा बंधू

poem by Umesh chandra srivastava


नेताओ की ऊर्जा बंधू, सीखो इनसे ज़रा-ज़रा।
झूठ-मूठ ये सब कुछ कहते- देखो इनकी कला-कला।
हार रहे हैं फिर भी इनके- चाल चलन में ढलन नहीं।
वो देखो फिर से ललकारा- हमी बनाएंगे सरकार।
कार-वार  का किस्सा अब तो हुआ पुराना राग रहा।
आयोग की बंदिश इतनी, शब्दो, पैसो पे जकडन।
फिर भी देखो नेता ऐसे- ऊष्मा की प्रतिमूर्ति बने।
मिले न मिले कुछ भी हो पर देखो वो तो डेट हुए।
कुछ ही दिन के इस मेले में वह तो एकदम फटे हुए।
बोल-बोल चिल्लाकर कहते, हम ही एक सुधर प्राणी।
बाकी सारे ऐसे-वैसे, मेरा कुनबा स्वच्छ रहा।
 ऐसे-ऐसे बोलो से तो जन-मन कुछ विचलित होता।
सोच रहा है कौन है सच्चा, दूजे को समझे बच्चा।
पता चलेगा मतदानों के बाद इन्हें, कौन है सच्चा।
                                                                                                 

                                                                                                                            - उमेश चंद्र श्रीवास्तव

poem by Umesh chandra srivastava         

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