poem by Umesh chandra srivastava
तुम्हीं पे ये निर्भर है पूरा स्वदेश।
तुम रहते वहां-जहां बर्फ़ों की चादर ,
यहां हम सुखी हैं ,वहां तेरा आदर।
बड़े ही जतन से है तुमने सँवारा ,
ये अपना वतन है ,तुम्हीं इसके न्यारा।
तुम्हें प्यार सम्मान ,सब कुछ न्योछावर ,
तुम मेरे वतन के ,रहो प्राण प्यारे।
बड़े ही सलीके से तुमने दिखाया ,
वतन पे तुम्हीं ने है मरना सिखाया।
अमर तुम , सजग तुम ,अनोखे हो प्राणी ,
नमन कर रहे हैं तुम्हें देश भक्तों।
तुम्हीं से सजा है ,ये पूरा वतन तो ,
तुम्हीं प्राण इसके तुम्हीं देवता हो।
तुम्हारी वजह से यहाँ हम सुखी हैं ,
तुम्हें हम सभी तो नमन कर रहे हैं।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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