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Saturday, February 18, 2017

गंग आचमन

poem by Umesh chandra srivastava


गंग आचमन करके निकली ,
देखा घाट को दृष्टि पसार। 
कोई देखता इधर-उधर था ,
कोई करता था मनुहार। 

कोई बैठ किनारे पर ही ,
माँ की पूजन में तल्लीन। 
कोई भिखारी को देता था ,
पैसा-कौड़ी और रुमाल। 

घाटों पर था दृश्य अनोखा ,
चन्दन ,रोली ,अक्षत-सब। 
वहीं किनारे पण्डा बैठे ,
भक्तों में निमग्न दिखे। 

कोई-कोई नज़र पैतरा ,
करके देखे इधर उधर। 
बाट जोहता वह शायद था ,
नज़र हटे 'औ'  काम करें । 

गंगा तट के घाट मनोहर ,
मण्डन-सुंडन सब होता। 
उधर दूर पर पक्षी उड़ते ,
इधर गा  रही महिला सोहर। 

आरति ,पुजा ,अर्चन ,वन्दन ,
सब कुछ दीखे यहाँ-वहाँ। 
कहाँ-कहाँ की बात बताऊँ ,
भाव मुताबिक दृष्टि दिखे। 




उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

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