poem by Umesh chandra srivastava
देखा घाट को दृष्टि पसार।
कोई देखता इधर-उधर था ,
कोई करता था मनुहार।
कोई बैठ किनारे पर ही ,
माँ की पूजन में तल्लीन।
कोई भिखारी को देता था ,
पैसा-कौड़ी और रुमाल।
घाटों पर था दृश्य अनोखा ,
चन्दन ,रोली ,अक्षत-सब।
वहीं किनारे पण्डा बैठे ,
भक्तों में निमग्न दिखे।
कोई-कोई नज़र पैतरा ,
करके देखे इधर उधर।
बाट जोहता वह शायद था ,
नज़र हटे 'औ' काम करें ।
गंगा तट के घाट मनोहर ,
मण्डन-सुंडन सब होता।
उधर दूर पर पक्षी उड़ते ,
इधर गा रही महिला सोहर।
आरति ,पुजा ,अर्चन ,वन्दन ,
सब कुछ दीखे यहाँ-वहाँ।
कहाँ-कहाँ की बात बताऊँ ,
भाव मुताबिक दृष्टि दिखे।
उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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