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Sunday, February 19, 2017

शिव का ऐसा रूप भयंकर

poem by Umesh chandra srivastava

शिव का ऐसा रूप भयंकर ,
कभी नहीं किसी ने देखा। 
अभयंकर भी क्रोध में आकर -
काटा था निज सुत का सिर। 
पर यह गलती अनजाने में ,
पता चला तो सिर बदला। 
लेकिन उस माँ की मजबूरी ,
रही भला क्या -वह जाने ?
अपने सुत के माँ के भाव को ,
शिव ने गर्द मिला डाला। 
कैसी नीति - सामाजिक बन्धु ,
जो अब भी सहती माएं !

 



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava

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