poem by Umesh chandra srivastava
कभी नहीं किसी ने देखा।
अभयंकर भी क्रोध में आकर -
काटा था निज सुत का सिर।
पर यह गलती अनजाने में ,
पता चला तो सिर बदला।
लेकिन उस माँ की मजबूरी ,
रही भला क्या -वह जाने ?
अपने सुत के माँ के भाव को ,
शिव ने गर्द मिला डाला।
कैसी नीति - सामाजिक बन्धु ,
जो अब भी सहती माएं !
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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