poem by Umesh chandra srivastava
चाँद दुल्हा बना ,चांदनी है दुल्हन ।
देखो उनका तो सहयोग इतना घना ,
चाँद निकले तभी चांदनी भी रहे ।
चाँद इठला के कहता-चंदनिया को ,
तुम हमारे से हो ,हम तुम्हारे से हैं।
राग कितना अनोखा सरल लग रहा ,
बात उनकी सुनो'औ 'अमल करो तुम।
माना चन्दा-चन्दनियां तो शास्वत रहे ,
हम तो मानव हैं ,कर्मों से शास्वत बनें।
वो निगाहें करम , वो नज़ारे सनम ,
डूब जायें ये रंगत ,ये संगत भला।
ज़िन्दगी तो बताओ है केवल कला ,
इस कला में चलो झूमें मस्ती करें।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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